दानिन महं तुम सम कोउ नाहीं । सेवक स्तुति करत सदाहीं ॥ सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और साफ कपड़े पहनें। सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा। बिकट रूप धरि लंक जरावा।। अस्तुति केहि विधि करैं तुम्हारी। क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥ वेद माहि महिमा तुम गाई। अकथ अनादि भेद नहिं https://shivchalisas.com